उत्पादकता ही सब कुछ नहीं है, परंतु दीर्घकाल में यह लगभग सबकुछ है।
~ नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री पॉल क्रुगमैन
2025 के बजट सत्र के दूसरे दिन भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एनडीए गठबंधन के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट पेश किया। उन्होंने वित्त मंत्री के पद पर रहते हुए देश का आठवाॅं बजट पेश किया, जो कीर्तिमान है। एआई और प्रॉम्प्ट के दौर में अगर आप बजट 2025 का प्रॉम्पट पढ़ें तो आपको 12 लाख आमदनी पर इतराते हुए कुछ लोग दिखेंगे, बिहार का नक्शा दिखेगा, यूरिया के प्लांट, कुछ युवा, किसान, और एआई से बनाई गई इस तस्वीर में भी एआई का वर्णन होगा।
आम बजट की पूर्व संध्या पर वित्त मंत्री ने संसद में देश का आर्थिक सर्वे पेश किया जिसमें सरकार द्वारा किए गए खर्चों का लेखा-जोखा और उससे भविष्य पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख था। निर्मला सीतारमण ने संसद में बताया कि वित्त वर्ष 2025-26 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.3-6.8 फीसदी की दर से बढ़ेगी। सरकार ने 12 लाख तक की वार्षिक आय वाले लोगों को इनकम टैक्स के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया है। इनकम टैक्स चुकाने वाले लोगों के लिया एक नए इनकम टैक्स स्लैब की घोषणा भी हुई तथा वित्त मंत्री ने एक नए इनकम टैक्स बिल का भी ऐलान किया जिसे बजट सत्र के आने वाले दिनों में पेश किया जाएगा। नए बिल में कुछ गै़र-ज़रूरी प्रावधानों को हटाया जाएगा तथा सरकार की यह कोशिश है की नए कानून से कर विवाद के मामलें कम किए जा सकें। मध्यम वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी माना जाता है। सरकार ने इसे अपनी योजना के केंद्र में रखकर यह संकेत दिया कि केंद्र को इस वर्ग की आवश्यकताओं का बोध भी है तथा उसे पूरा करने की इच्छाशक्ति भी।
इसके अलावा वित्त मंत्री ने जानकारी दी कि उड़ान स्कीम के तहत पटना हवाईअड्डे का विस्तार किया जाएगा तथा बिहटा में ब्राउनफील्ड एयरपोर्ट बनाया जाएगा। मिथिलांचल में पश्चिमी कोसी नहर परियोजना शुरू होगी जिससे दरभंगा, मधुबनी, सहरसा तथा सुपौल के किसानों को फायदा मिलेगा। आईआईटी पटना का विस्तार तथा फूड टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट की स्थापना भी की जाएगी। इसके साथ ही कृषि से भी जुड़े कई ऐलान किए गए जो कि आगामी विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
शिक्षा के क्षेत्र में 23 आईआईटी में कुल 6500 सीटों को बढ़ाने का एलान हुआ है तथा आईआईटी की कुल संख्या को दुगना करने का लक्ष्य रखा गया है। देशभर के स्कूलों में 50,000 अटल टिंकरिंग लैब्स की स्थापना की जाएगी तथा अगले पाॅंच सालों में पूरे देश में मेडिकल की 75000 सीटें बढ़ाई जाएंगी। सरकारी माध्यमिक स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना तथा स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने का एलान इन सभी ऐलानों में सबसे अधिक प्रभावित करने वाला रहा। स्किल डेवलपमेंट के लिए पूरे देश में पाॅंच नेशनल सेंटर ऑफ एक्सिलेंस स्थापित किए जाएंगे तथा 500 करोड़ के निवेश से 3 सेंटर फॉर एक्सिलेंस इन एआई खोले जाएंगे। इसके अलावा पीएम रिसर्च फेलोशिप के तहत 10,000 नई फेलोशिप दी जाएगी।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हर ज़िला अस्पताल में कैंसर डे केयर केंद्र बनाए जाएंगे, जिसमें से 200 केंद्र वित्त वर्ष 2025-26 में ही बनाए जाएंगे। गिग वर्कर्स के कामगारों के लिए आईकार्ड, ई श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन और जन आरोग्य योजना का लाभ देने की घोषणा भी की गई है।
लघु एवं मध्यम उद्योग को आसानी से लोन देने के लिए सरकार क्रेडिट गारंटी कवरेज को 5 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ करेगी तथा जो उद्योग वैश्विक बाज़ार में अपने उत्पाद को उपलब्ध करवाते हैं उन्हें 20 करोड़ तक के लोन की विशेष सुविधा दी जाएगी। स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए 10,000 करोड़ के फंड की बात भी की गई जो कि एक बढ़िया कदम है। बजट में लघु एवं मध्यम उद्योग को कर्ज़ देने के प्रावधानों को आसान करने की कोशिश की गई है लेकिन उनकी असली चुनौती कर्ज़ नहीं बल्कि उस तकनीक का अभाव है जिसके चलते उनके उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपना पुख्ता स्थान नहीं बना पा रहे। आर्थिक सर्वे में आगमी वित्त वर्ष में जो विकास दर का अनुमान लगाया जा रहा है वह ज़रूरी आंकड़े से कोसों दूर है। देश को विकसित बनाने के लिए जिस विकास दर की ज़रूरत है, उसे तब तक हासिल नहीं किया जा सकता जब तक हमारे उद्योग वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम नहीं हो जाते। आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूर्ण करने हेतु लघु एवं मध्यम उद्योगों को सशक्त करने में सहायता तो मिलेगी लेकिन जब तक लोकलुभावन नीतियों से किनारा नहीं किया जाएगा, तब तक यह सपना पूरा होना कठिन है।
बजट के आगे पीछे कई तरह के अनुमान एवं विश्लेषणों का दौर चलना अब आम बात हो गई है और इस कतार में सबसे आगे भारतीय मीडिया है, जो किसी ख़बर को दर्शक वर्ग तक पहुँचाने की किसी स्पर्धा में रहते हैं। इस स्पर्धा में चाहे कोई हारे-जीते पर अंततः पराजित यथार्थ और प्रमाण ही होते हैं। टीवी चैनलों पर तमाम अर्थशास्त्री एवं सांख्यिकीविद् अपने विश्लेषण देते हैं और संसद में भी सरकार और विपक्ष के नेता बजट की श्रेष्ठता व खामियां गिनाते हैं, भले ही उन्होंने पूरी तरह से बजट को समझा भी ना हो। टीवी चैनल और अखबार बजट के अलावा और भी कई लंतरानियां बुनते हैं। वित्त मंत्री की साड़ी का रंग, उनके बजट भाषण की अवधि तथा उन्होंने किस शब्द का प्रयोग सबसे अधिक बार किया जैसे तथ्य ही ख़बरों की परात में सबसे पहले परोसे जाते हैं। बजट से कितना फायदा होता है या कितना नुकसान इसका अंदाज़ा लगा पाना तो मुश्किल है, लेकिन यह निश्चित है कि इस दिशा में एक ठोस शुरुआत ज़रूर हुई है। अब यह देखना होगा कि ‘बजट की फिरनी’ किस वर्ग के लिए स्वादिष्ट साबित होती है और किस वर्ग के लिए बस एक जुमलेबाजी। खैर, बजट में कितनी ही बातें भांज ली जाएँ, सौगातें लाद दी जाएँ पर विकास का खेल आखिरकार सफल कार्यान्वयन की सूली पर ही झूलता रह जाता है। अंततः इस बजट की सफलता सरकार के सामाजिक उत्तरदायित्व तथा आर्थिक व्यवहारिकता के बीच संतुलन को बनाए रखने की क्षमता पर निर्भर करेगी।